केवल शब्दों
और अक्षरों के सहारे
व्यक्त नही करना चाहता
आक्रोश ,संवेदनाएं
चाहता हूँ
वे सभी अक्षर और शब्द
जो उबल रहे हैं
मेरे और आपके भीतर
क्रांति बनकर बाहर आयें
वे सभी
जो केवल झंडा लेकर कर रहे हैं
बदलाव की मांग
मैं देखना चाहता हूँ
बदलाव उनकी भाषा की व्याकरण में
औपचारिकता के नाम पर
लिखने से अच्छी है
ख़ामोशी ,
खामोश मनुष्य के भीतर भी दबी रहती है
एक बीज कविता ......
और अक्षरों के सहारे
व्यक्त नही करना चाहता
आक्रोश ,संवेदनाएं
चाहता हूँ
वे सभी अक्षर और शब्द
जो उबल रहे हैं
मेरे और आपके भीतर
क्रांति बनकर बाहर आयें
वे सभी
जो केवल झंडा लेकर कर रहे हैं
बदलाव की मांग
मैं देखना चाहता हूँ
बदलाव उनकी भाषा की व्याकरण में
औपचारिकता के नाम पर
लिखने से अच्छी है
ख़ामोशी ,
खामोश मनुष्य के भीतर भी दबी रहती है
एक बीज कविता ......
Very Impressive. Nice one.
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