Saturday, February 20, 2010

सीखना चाहता हूं

चला जाना चाहता हूं
मैं वहां तक
जहाँ तक नजरें जाती हैं .....
जंहाँ देखता हूं रोज
सूरज को डूबता हुए .

मैं पकड़ना चाहता हूं अपने हाथों में
पश्चिम की आकाश में फैले हुए रंगों को
भर लेना चाहता हूं
उन्हें अपने दामन में.
कुमुदनी पर मचलते तितलियों से सीखना चाहता हूं
आशिक बनना
मैं उनका शागिर्द बनना चाहता  हूं .

नन्हे पौधों से सीखना चाहता  हूं
सर झुकाकर नमन करना , और
सीखना चाहता हूं
मित्रता. किन्तु
मनुष्यों से नहीं
पालतु पशुओं से , किउंकि
वे स्वार्थ के लिए
कभी धोखा नहीं देते .

1 comment:

युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....

. 1.   मैं युद्ध का  समर्थक नहीं हूं  लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी  और अन्याय के खिलाफ हो  युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो  जनांदोलन से...