Sunday, November 7, 2010

मेरे ख़त के जबाव में

मैंने लिखे उन्हें ख़त
 मिले उन्हें मेरे ख़त
किन्तु जबाव न आया  मेरे किसी ख़त का
मेरे ख़त के जबाव में
कोई ख़त न भेज कर
उन्होंने मेरे खतों का जबाव दिया
खामोश रहकर .

11 comments:

  1. Khamoshi Bahut kuchch kahti hai. Shabdon se kahin zyada. Aakhri do panktiyan bahut sundar hai.

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  2. bahut khoob janab.. jubaan ka behtereen istemaal kar lete hain aap - Fakharu

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  3. खतो के जवाब का एक यह अंदाज़ भी
    बहुत अच्छा

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  4. मिश्रा जी , वर्मा जी मेरा धन्यवाद स्वीकारें

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  5. कभी खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है...

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  6. खूब लिखा है आपने। ग़ज़ल की विधा में कहें तो ऐसे भी कहा जा सकता है।

    " लिखा जो ख़त मेरे ख़त के जवाब में उसने
    भुला दिया उसे रखकर किताब में उसने
    नहीं- नहीं का भी मतलब है उसकी हाँ यारो
    कि दे दी मात सभी को हिसाब में उसने। "

    कुमार अनिल

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  7. आपकी ये कवितायेँ अपने आप में काफी गूढ़ अर्थ समतें हुए हैं | आपकी इस प्रयास के लिए आपको ह्रदय से धन्यवाद् |

    - प्रिया

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...