बंदूक ,गोली
तोप, बम्ब
बन गए हैं ---
विकास के स्तम्भ /
छोटे होते तन के कपड़े
सास बहू के घर के झगड़े , को
मीडिया बना रही --
नारी मुक्ति और अभिव्यक्ति का स्वर /
नोट के बदले वोट ले- लो
डालर के बदले देश ले -लो
फिर भी वतन प्यारा
बन चुका है नेता जी का नारा /
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
सच भाई ..भरपूर सम्प्रेशिनियता के साथ ..सुंदर काव्य
ReplyDeleteBahut hi accha lika hai aapne.
ReplyDeleteLekin ek sawaal sab paathkon se - Ye to humare problems hai ...kya kisi ke paas iska solution bhi hai??
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति है आपकी सभी कविताओं में . अच्छा लगा और काफी सुकून मिला .
ReplyDeleteभाई नित्यानंद गयें,
ReplyDeleteसुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति, ऐसे ही विषय के प्रति समर्पित भाव से लिखते रहें और मुझे पाठन हेतु साझीदार बनाते रहें.....,
शुभभावना और शुभकामना सहित,
media par tamacha.......??????
ReplyDeletegood lesson
really true
ReplyDeleteneta ki pol khol rahe ho,
ReplyDeletekuch mehgai ke baarey mein bhi likho mere bhai :-)
Abhivyakti ke Satik-Sunder Svar !
ReplyDeleteYATHARTH KO JO SADA YAAD RAKH TA HAI...JEEVAN KO JO EK PATHSHAALA MAN KAR VINAMRA PURVAK SEEKHTA HI REHTA HAI...WAHI NITYA ANAND KI AWASTHA MEIN AISEE ARTHPURNA ABHIYAKTI KAR SAKTA HAI...
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