१.जीवन पथ पर
जीवन पथ पर
तुम्हारी चाह ने
कई पडाव पर
किया है मुझे
निर्जीव
अकेला चला
फिर पुनर्चेतना के बाद
रुक कर
सघन वृक्ष की छावं में
सोचता रहा
कहानी हर पडाव की
झूट ,कपट और छल को
तुम्हे समझने में
बड़ी देर हुई
आज शर्मिंदा हूँ
चाह पर अपनी
दिल की धड़कनों में
फिर बज उठी है
“एकला चलो रे”
जीवन पथ पर
साथी है अब यही धुन ...
२.ताकि फिर आ सके बहार
मैं फिर सीचुंगा
इस उजड़े बाग को
ताकि आये बहार
तुम्हारे जीवन में
फिर एक बार
मैं फिर सीचुंगा
ताकि भर जाये
नग्न शाखाएं हरे पत्तों से
हर तरु की
और बहने लगे
मंद शीतल पवन
आंगन में हमारे
मैं फिर सीचुंगा
ताकि लौट आये
सभी तपस्वी
जो, चले गए रूठ कर
और भर जाये
यह तपोवन फिर एक बार ....
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteShukriya Sdaa ji
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