अपने ही मुद्दों से
जुड़े सवालों पर वे बिखरे -बिखरे से हैं
जहाँ होना था एकजुट
वे टूटे हैं
या तोड़े गये हैं
कुछ ने तो राजनीति की
जमकर
और कुछ ने भटकाया है
हक की लड़ाई यूँ नही लड़ी जाती
गुटों में बंट कर
हाथ की उँगलियों को जोड़कर
मुट्ठी बनाकर देखिये ,
कितनी मजबूत है
ये जो टीवी पर दिखाकर
कहानी घर -घर की
नारी को नारी से लड़ाने की साज़िस
सोचिये इस प्रश्न को कभी फुर्सत से
हक कोई देता नही किसी को
आसानी से
लड़कर लेना होगा
वजूद का सवाल जो है
दिया हुआ हक छीन लें कब कोई
ये भी किसे खबर ...?
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