1.
शुक्रिया करूँ उनका
या
हंसू खुद पर ...
मेरी हर बात को पसंद किया
मेरी हर बात को पसंद किया
मेरे चेहरे की मासूमियत देख कर ..
2.
मज़हब का रंग न चढाओ
मेरी वतनपरस्ती पर
मेरी वतनपरस्ती पर
खून मेरा भी लाल है तुम्हारी तरह ...
3.
चलो अब तुमसे कोई
शिकायत नही करूँगा
तुम क्या हो , कौन हो
शिकायत नही करूँगा
तुम क्या हो , कौन हो
सोचना अकेले में कभी ......
4.
ऊपर से सूख चुके ज़ख्मों को
कुरेदने में
कुरेदने में
बहुत आनंद आता है उन्हें
ये सभी सम्वेदनशीलता की चादर ओढ़े रहते हैं
जब उतर जाती है घाव की ऊपरी परत
और रिसने लगता है पानी
ज़ख्म से
ज़ख्म से
वे मुस्कुराते हैं ....
5.
उन्हें गम है
कि हम दोस्त हैं
कि हम दोस्त हैं
वे चाहते हैं हमें
लड़ते देखना
ज़हर की पुड़िया लिए घूमते हैं कुछ लोग
ये वही है
जो व्याख्यान देते हैं
मित्रता के पक्ष में
6.
उन्होंने
खोली बोतल शराब की मेरे लिए
मैंने सिर्फ पानी मिलाया
और मैं ही शराबी कहलाया
7.
कविताएँ उनकी भी छपी
और उनकी भी
अंतर कविताओं में नही
तस्वीरों में था ....
बस एक को ही वाहवाही मिली ....
7.
कविताएँ उनकी भी छपी
और उनकी भी
अंतर कविताओं में नही
तस्वीरों में था ....
बस एक को ही वाहवाही मिली ....
jai ho .......
ReplyDeleteसभी क्षणिकायें बहुत प्रभावशाली हैं। बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आ सका, पर आना सार्थक हुआ। कई सशक्त कविताएं भी पढ़ने को मिलीं।
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया . आपकी टिप्पणी पा कर खुशी हुई उमेश जी . सादर
ReplyDeleteमज़हब का रंग न चढाओ
ReplyDeleteमेरी वतनपरस्ती पर
खून मेरा भी लाल है तुम्हारी तरह ...
बहुत खूब ... खून तो सभी का एक ही है ... ओर मिट्टी भी सबकी एक ...
प्रभावी क्षणिकाएं ...
बहुत -बहुत शुक्रिया सर .
Deletesaari kshanikayen bahut arthpurn aur rochak hain.
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया...सादर
Deleteकितने कम शब्दों में कितनी गहरी और अर्थवान बातें कही हैं भाई... मुबारक...
ReplyDeleteधन्यवाद भैया .
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