Wednesday, August 2, 2017

कविता मेरी मिट्टी में छिपी हुई है

कविता कहाँ है उन्हें नहीं पता 
उन्होंने नहीं देखा खेत में किसान को
नहीं देखा उन्होंने पसीने से भीगे हुए मजदूर के बदन को
कुम्हार के चाक पर गढ़ते नये सृजन के बारे में नहीं पता उन्हें
तभी पूछा गया यह सवाल 
माँ की गोद में खिलखिलाते शिशु की हंसी को महसूस नहीं किया होगा शायद
बागों में जो फूल खिले हैं
उसमें भी नहीं मिली उन्हें कविता
पहाड़ से निकलती नदी की कल -कल में कविता को खोज नहीं पाए हैं वे
आकाश पर उड़ते पंछियों से पूछा नहीं उन्होंने आज़ादी का मतलब
नफ़रत के सौदागर कभी समझ नहीं पाए प्रेम का स्वाद
और पूछते हैं सवाल
कविता कहाँ है ?
कविता मेरी मिट्टी में छिपी हुई है
बारिश के बाद सौंधी खुशबू के साथ बाहर निकलती है
और मुझे महका देती है |

1 comment:

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