Wednesday, August 2, 2017

बेअसर हो गयी तमाम कविताओं को

बेअसर हो गयी तमाम कविताओं को
मैंने जला देना बेहतर समझा
शब्दों का ढेर बेजान सा कागज की छाती पर पड़ा है
लोग बेपरवाह हैं
उन्हें कोई मतलब नहीं कि पड़ोस के घर में आग लगी है 
सड़क पर कोई रक्त से भीगा पड़ा है
किसी गौ रक्षक ने भीड़ के सामने उसकी हत्या कर दी है
भीड़ ने उस हत्या की फिल्म बनाई है
बस उस भीड़ ने उसे बचाने के लिए कुछ नहीं किया
उसी सड़क के किनारे बड़ा सा होर्डिंग लगा है जिस पर देश के प्रधान
बहुत ही स्वच्छ और उज्ज्वल परिधान में खड़े हैं
उस होर्डिंग पर सबसे बड़ी तस्वीर भी उनकी है
और उनके पीछे एक ग्रामीण स्त्री हल्की मुस्कान लिए अपने चेहरे भर के साथ मौजूद हैं
जहाँ एक रसोई गैस का सिलेंडर है ...और लिखा है ... महिलाओं को मिला सम्मान !
'प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना'
सिलेंडर से सम्मान इस बात को समझने की जरूरत है
कि सम्मान के लिए कई उपाय है सत्ता के पास
और सम्मान भी सब्सिडी के साथ !
और सब्सिडी सदा के लिए नहीं होती
माताएं खूब जानती हैं इस बात को
पर कहती नहीं
क्योंकि उनके बोलने से ही हलचल पैदा हो सकती है
इसलिए यहाँ महिलाओं को घुंघट में रहने की सलाह दी जाती है अक्सर
और यह भी बता दिया जाता है कि
'खूब लड़ी मर्दानी वो झाँसी वाली रानी थी '*
(सुभद्राकुमारी चौहान की कविता )
और भी बहुत कुछ
माने कि सम्मान जो वे अपनी इच्छा से आपको दें
उसी में संतोष रहो , इसी में मर्यादा है
यही उनका मानना है
जरूरत पड़ने पर रानी पद्मावती की कहानी भी सुनायेंगे
वे किसानों को अन्नदाता कह कर संबोधित करेंगे
और अपने हक़ के लिए सड़क पर उतरे तो गोली चलवा देंगे
वे विश्वविद्यालय में पुस्तकालय नहीं तोप लगाने की पैरवी करेंगे
ऐसा बहुत कबाड़ लिख चुका हूँ
और उन्हें कविता मानता आया हूँ
किन्तु अब लगता है केवल शब्दों का ढेर जमा किया है हमने
और अब जब चारों ओर स्वच्छता का नारा है
बापू का चश्मा भी इस अभियान का सिम्बल बना दिया गया है
और कहीं कोई असर नहीं मेरे लिखने का
ऐसे में उन्हें जला देना ही उचित होगा शायद !

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भारतीय तिरंगे के डिजाइनर - पिंगली वैंकैया और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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