Friday, February 16, 2018

खोजो


खोजो कि कुछ खो गया है
पर खोजो यह मान कर कि सब कुछ खो गया है
खोजो कि खो गई हैं
हमारी संवेदनाएं
बच्चों का बचपन खो गया है
खोजो, कविताओं से गायब हुए प्रेम को
और सभ्यता की भाषा खो गई है
खोजो कि देश का लोकतंत्र कहाँ खो गया है
सत्ता का विवेक खो गया है
नागरिक का अधिकार खो गया है
मानचित्र तो मौजूद है
कहीं मेरा देश खो गया है
उसे खोजो धरती की आखिरी छोर तक
खोजो कि,
किसान का खेत खो गया है
पेड़ की चिड़िया खो गई है
खोजो इस भीड़ में कहीं
मेरी तनहाई 
खो गई है
खोजो मुझे कि
मैं खो गया हूँ

1 comment:

  1. हर आदमी खोया-खोया सा है, गुम....पता नहीं कहाँ और क्यों ?

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