Tuesday, February 6, 2018

सूरदास खुश हैं ........



आज फिर हाथ लगी पुरानी डायरी , इसमें अधूरी पड़ी एक कविता कुछ सुधार के साथ .........

प्रेम करता हूँ कहना 
आसान हो सकता है 
पर उस प्रेम को को महसूस करे कोई 
सबसे मुश्किल यही है 
दरअसल प्रेम लिखना और प्रेम करना दो अलग-अलग क्रियाएं हैं 
किन्तु दोनों के लिए ही प्रेम का अहसास बेहद जरुरी है
जरा सोचिए जब आप 'प्रेम' शब्द को लिखते हैं 
उस वक्त आपके मन में कैसा भाव उठता है ? 
तब कुछ मीठा सा या कुछ खालीपन भी उभर सकता है मन में 
और उस अहसास को 
हम अलग -अलग शब्दों से व्यक्त करते हैं शायद 
अपने उस प्रेम को हम 
अक्सर मुकम्मल शब्द नहीं दे पाते 
जो काम हम शब्दों से नहीं कर पाते 
अक्सर वह बात व्यक्त हो जाती है आँखों से 
स्पर्श से महसूस कर लेता है कोई 
उस प्रेम को
आजकल हमारी आँखें सूख रही हैं 
हाथ खुरदरे हो चुके हैं 
इसलिए लगातर असमर्थ हो रहे हैं हम 
उस प्रेम को व्यक्त करने में 
आँखों से, 
स्पर्श से !
हमारी भाषा कड़वी हो चुकी है |
हम बाजार में घूम रहे हैं नये नये गैजेट की तलाश में 
जिसके सहारे 
हम क्षण भर में लिख भेज देना चाहते हैं अपना प्रेम 
तभी पता चलता है कि 
किसी गाँव में 
खाप ने मौत की सज़ा सुनाई है एक प्रेमी को 
किसी मौलाना ने जारी किया है कोई फ़तवा 
और किसी माँ-बाप ने मार दिया अपनी संतान को 
प्रेम के अपराध में
बगल में कहीं एक 
राधा-कृष्ण के मंदिर के बाहर मीराबाई 
उदास आँखें लिए 
बैठी हैं 
सूरदास खुश है कि 
वह नेत्रहीन हैं |

रचनाकाल : 22 मार्च , 2014 

No comments:

Post a Comment

युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....

. 1.   मैं युद्ध का  समर्थक नहीं हूं  लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी  और अन्याय के खिलाफ हो  युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो  जनांदोलन से...