Wednesday, February 2, 2011

बागबाहरा के चार दिन

वर्ष दो हजार ग्यारह
अट्ठाईस से इकतीस जनवरी तक
मेरा पड़ाव था बागबाहरा
यहाँ एक घर है
इस घर में छतीस जन हैं
बागबाहरा का यह घर
लगा मुझे और उन्हें
जैसे बागों में बहार हो
देवताओं का आमंत्रण हो
अपने भक्तों को /

लगा मुझे जैसे
यहीं से हुआ था श्री गणेश
अतिथि देवो भवो /

बागबाहरा के  छत्तीस जनों वाले इस घर में
पहले -पहल
मेरे इस प्रवास के अनुभव को
मैंने कहा--
गूंगे का मीठा आम
राजमार्ग से सटा हुआ
खेत - खलियान से जुड़ा हुआ
यह घर जिसके सामने
आलीशान देवालय भी
क्षीण लगा मुझे /

चहकते - कूदते
चलते -फिरते
हर कोई
देव दूत लगा मुझे
आदर -सत्कार
सेवा भाव , सुसंस्कृत से
अलंकृत
इस घर का प्रत्येक सदस्य /

बच्चा, बुजुर्ग
क्या कुछ नही सिखाया मुझे?
इस प्रवास के बाद
अब किसी मंदिर की तलाश नही मुझे
किउंकि --
देवकी -वासुदेव
यशोदा और नन्द
और मिले --
रजत कृष्ण मुझे
बागबाहरा के इस घर में /


3 comments:

  1. mil jul kar rahne ki bhawna,...se ot prot

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  2. मिल जुल कर रहने की भावना को उजागर करती बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|

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  3. rajat krishna aur unke gaaon ko shabdon me bandha nahin jaa sakta bhai, beshak wo sab great hain aur adbhut mehmaan-nawaaz hain, aapne bahot achchha drishy kheenchaa hain
    badhaai

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