हे महान वीर सपूतों
तुम्हारे लहू से
सिंची जमीं पर
उग आये हैं
नागफ़नी के पेड़
बेख़ौफ़ होकर
बढते गए
सोख कर नमी इस माटी की
देखो कैसे हँस रहे हैं
फैलाकर कांटे
चारो ओर
आज समय है घनघोर
उन्माद हंसी हंस रहे हैं
सभी महाचोर
शाहदत तुम्हारी
व्यर्थ न जाये
जीवन यूँही सूख न जाये
हर पल तुम्हारी याद आये
हे भगत महान
लौट आओ
एक नई
क्रांति का राह दिखलाओ
तुम्हारे लहू से
सिंची जमीं पर
उग आये हैं
नागफ़नी के पेड़
बेख़ौफ़ होकर
बढते गए
सोख कर नमी इस माटी की
देखो कैसे हँस रहे हैं
फैलाकर कांटे
चारो ओर
आज समय है घनघोर
उन्माद हंसी हंस रहे हैं
सभी महाचोर
शाहदत तुम्हारी
व्यर्थ न जाये
जीवन यूँही सूख न जाये
हर पल तुम्हारी याद आये
हे भगत महान
लौट आओ
एक नई
क्रांति का राह दिखलाओ
bhavbhini shrddhanjili!!
ReplyDeleteaapke shabdon ne jin arthon ko samahit kiya hua hai, vo kranti ki zameen ke banjar pan ki or ishara karte hain aur kantedhari ye naagfani vale mahachor kaun hai, kaun nahi janta?
bhavpurn aur sateek kavita!!
आभार सुनितामोहन जी ,
ReplyDeletedhanyvaad! aapka blog bahut badhiya haiaur lokpriyta ki or badhta hua hai, aapke blog ki sadasya bankar achchha lag raha hai, ab jo bhi aap naya likhenge mujhe pata chal jayega aur mai uska raspaan kar sakungi!
Deletesecondly thanks for joing my blog, aapko mail karna chaah rahi thi par net problem ke karan sambhav nahi ho paya.