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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
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एक नदी जो निरंतर बहती है हम सबके भीतर कहीं वह नदी जिसने देखा नही कभी कोई सूखा वह नही जिसे प्यास नही लगी कभी मैं मिला हूँ उस ...
तब हम भागते फिरेंगे
ReplyDeleteअपने जीवन के लिए
पर ..तब कहीं
पनाह न मिलेगी हमें ......
जितनी जल्द समझ लें उतना अच्छा है ..
एक नजर समग्र गत्यात्मक ज्योतिष पर भी डालें !!
शुक्रिया , जरुर
Deleteशुक्रिया , जरुर
Deleteवक्त की मांग के अनुसार अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteवे सभी वृक्ष
जिन्हें काट दिया हमने
वे सभी पक्षी
छीन लिए जिनके
आशियाने हमने
कर देंगे विद्रोह......बेहतर अभिव्यक्ति...
वे सभी वृक्ष
ReplyDeleteजिन्हें काट दिया हमने
बेरहमी से
विकास के नाम पर
वे सभी पक्षी
छीन लिए जिनके
आशियाने हमने
अपने सुख की खातिर
कर देंगे विद्रोह
भयानक रूप लेकर
तब हम भागते फिरेंगे
अपने जीवन के लिए
पर ..तब कहीं
पनाह न मिलेगी हमें ...... आरम्भ हो चुका है