कोशिशें बहुत की
तुम्हें रोकने की
नाकाम हुई मेरी कोशिशें
तुम्हें बचकाना लगा
मेरा प्रयास
तुम्हें रोकने की
नाकाम हुई मेरी कोशिशें
तुम्हें बचकाना लगा
मेरा प्रयास
उजाले की आस में
मैंने खोल दिए झरोखें
तभी, कुछ बादलों ने ढक लिया सूर्य को
अब तो मानना पड़ा कि
खपा है इनदिनों सूरज भी
मैंने खोल दिए झरोखें
तभी, कुछ बादलों ने ढक लिया सूर्य को
अब तो मानना पड़ा कि
खपा है इनदिनों सूरज भी
चलो अब मैं मानता हूँ हार
लेकिन अब मैंने
द्वार खोल दिया है
इस उम्मीद में, कि
कभी तो हटेंगे ये बादल..
बहुत सुंदर कविता भाईजी.
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