Saturday, March 9, 2013

क्षणिकाएँ

1.

शुक्रिया करूँ उनका 

या 

हंसू खुद पर ...

मेरी हर बात को पसंद किया 


मेरे चेहरे की मासूमियत देख कर ..


2.

मज़हब का रंग न चढाओ 
मेरी वतनपरस्ती पर 
खून मेरा भी लाल है तुम्हारी तरह ...

3.

चलो अब तुमसे कोई
 शिकायत नही करूँगा 
तुम क्या हो , कौन हो 
        सोचना अकेले में कभी ......

4.

ऊपर से सूख चुके ज़ख्मों को 

कुरेदने में 


बहुत आनंद आता है उन्हें 

ये सभी सम्वेदनशीलता की चादर ओढ़े रहते हैं 

जब उतर जाती है घाव की ऊपरी परत 

और रिसने लगता है पानी 

ज़ख्म से
वे मुस्कुराते हैं ....


5.

उन्हें गम है 
कि हम दोस्त हैं 


वे चाहते हैं हमें 

लड़ते देखना 

ज़हर की पुड़िया लिए घूमते हैं कुछ लोग 

ये वही है 

जो व्याख्यान देते हैं

मित्रता के पक्ष में


6.

उन्होंने 


खोली बोतल शराब की मेरे लिए 


मैंने सिर्फ पानी मिलाया 

और मैं ही शराबी कहलाया

7.

कविताएँ उनकी भी छपी 
और उनकी भी 


अंतर कविताओं में नही 
तस्वीरों में था ....


बस एक को ही वाहवाही मिली ....

9 comments:

  1. सभी क्षणिकायें बहुत प्रभावशाली हैं। बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आ सका, पर आना सार्थक हुआ। कई सशक्त कविताएं भी पढ़ने को मिलीं।

    ReplyDelete
  2. बहुत -बहुत शुक्रिया . आपकी टिप्पणी पा कर खुशी हुई उमेश जी . सादर

    ReplyDelete
  3. मज़हब का रंग न चढाओ
    मेरी वतनपरस्ती पर
    खून मेरा भी लाल है तुम्हारी तरह ...

    बहुत खूब ... खून तो सभी का एक ही है ... ओर मिट्टी भी सबकी एक ...
    प्रभावी क्षणिकाएं ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया सर .

      Delete
  4. saari kshanikayen bahut arthpurn aur rochak hain.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया...सादर

      Delete
  5. कितने कम शब्‍दों में कितनी गहरी और अर्थवान बातें कही हैं भाई... मुबारक...

    ReplyDelete

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...