मैं कवि हूँ
और अब ख़बरें लिखता हूँ
जबकि उन ख़बरों में
मैं होता नहीं हूँ
क्योंकि कवि
कविता में होता है
और कविताएँ अब
बची नहीं हैं मुझमें
क्यों कि अब
मुझमें बचा नहीं है
प्रेम !
और अब ख़बरें लिखता हूँ
जबकि उन ख़बरों में
मैं होता नहीं हूँ
क्योंकि कवि
कविता में होता है
और कविताएँ अब
बची नहीं हैं मुझमें
क्यों कि अब
मुझमें बचा नहीं है
प्रेम !
रोज- रोज हत्याएं
सत्ता की खुली छूट
मेरी आँखों का पानी सूखने लगा है
अब शायद बह निकले लहू मेरी आँखों से
सत्ता की खुली छूट
मेरी आँखों का पानी सूखने लगा है
अब शायद बह निकले लहू मेरी आँखों से
गरीब अपना घर छुड़ाना चाहता है
पर उसे देना होगा
गाय की भलाई के लिए टैक्स
टैक्स के रूप में जिन्दगी भी ले सकती है सत्ता
पर उसे देना होगा
गाय की भलाई के लिए टैक्स
टैक्स के रूप में जिन्दगी भी ले सकती है सत्ता
गरीब को मरना होगा
गौ-माता की जिन्दगी के लिए
यह राजकीय आदेश है
गौ-माता की जिन्दगी के लिए
यह राजकीय आदेश है
इंसानों के लिए मरना नहीं बल्कि गाय के बदले इन्सानो की हत्या करना आज का मूलमंत्र है. आप कैसे हिन्दू हैं भाई जो इतनी सी बात नहीं समझते.
ReplyDeleteमैं इन्सान हूँ एक , इंसानियत ही मेरा धर्म है | मैं हिन्दू हूँ न मुसलमान नहीं कोई इसाई या जैन और सिख , मैंने प्रेम इन्सान से किया है
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - राहुल सांकृत्यायन जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआभार आपका
Deletekavita ko zinda rakhiya apne andar ... nahi to dheere dheere mar jayegi kavita bhee..... aur prem ..... use to bachana hi padega ...
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