Saturday, April 8, 2017

मेरी माँ कोई गाय नहीं है

मैं कवि हूँ
और अब ख़बरें लिखता हूँ
जबकि उन ख़बरों में
मैं होता नहीं हूँ
क्योंकि कवि 
कविता में होता है
और कविताएँ अब
बची नहीं हैं मुझमें
क्यों कि अब
मुझमें बचा नहीं है
प्रेम !
रोज- रोज हत्याएं
सत्ता की खुली छूट
मेरी आँखों का पानी सूखने लगा है
अब शायद बह निकले लहू मेरी आँखों से
गरीब अपना घर छुड़ाना चाहता है
पर उसे देना होगा
गाय की भलाई के लिए टैक्स
टैक्स के रूप में जिन्दगी भी ले सकती है सत्ता
गरीब को मरना होगा
गौ-माता की जिन्दगी के लिए
यह राजकीय आदेश है
सुनो, सत्ता !
मेरी माँ कोई गाय नहीं है
मेरी माँ इन्सान है
और उन्होंने मुझे
इंसानों के लिए मरने की सीख दी है |




5 comments:

  1. इंसानों के लिए मरना नहीं बल्कि गाय के बदले इन्सानो की हत्या करना आज का मूलमंत्र है. आप कैसे हिन्दू हैं भाई जो इतनी सी बात नहीं समझते.

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    1. मैं इन्सान हूँ एक , इंसानियत ही मेरा धर्म है | मैं हिन्दू हूँ न मुसलमान नहीं कोई इसाई या जैन और सिख , मैंने प्रेम इन्सान से किया है

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - राहुल सांकृत्यायन जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. kavita ko zinda rakhiya apne andar ... nahi to dheere dheere mar jayegi kavita bhee..... aur prem ..... use to bachana hi padega ...

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...