Sunday, March 18, 2012

देखो पैंतरा कमाल की


इंदिरा ,माया , जया
जो चाहा
सब पाया
हम -तुम बने रहे
बस बेहया
त्रिवेदी से पूछकर देखो
ममता से क्या पाया

किशन गया
त्रिवेदी भी गया
अब बारी बंगाल की
देखो पैंतरा कमाल की

दिल्ली का " सिंह"
कमजोर है
बंगाल टाइगर जानती है
न माँ रही
न माटी रही
मानुष की खोज जारी है ............

3 comments:

  1. अच्छा व्यंग्य , नागार्जुन कि कविता पढ़िए आप अच्छी व्यंग कविता लिख सकते हैं

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  2. एकदम सही एवं सटीक मारक व्यंग्य लिखा है आपने। एक-एक की बखिया उधेड़ कर रख दी।
    मेरे विचार से आपकी कविता नागार्जुन की कविताओं से किसी भी प्रकार कम नहीं है। आपकी कविता में नाग एवं अर्जुन दोनों के दर्शन हो रहे हैं।

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  3. आभार गोपाल जी , पर बाबा नागार्जुन बहुत बड़े स्तम्भ हैं आज भी ... उनके बराबर पहुँच पाना संभव नही .....

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...