Tuesday, December 8, 2015

मैंने तुम्हें थाम लिया अंजुरी में

कवि जब रोता है
तब भी कविता होती है
तो, अब जब तुम भी जान चुकी हो ये बात
मैं बता देना चाहता  हूँ
कि मैं अक्सर सोचता हूँ तुम्हें
और तुम्हें सोचते हुए भर आती  है मेरी आँखें
क्या तुम देख पाती हो कोई कविता
मेरे अश्कों में !
मैंने धरती को अलविदा कहना चाहा
और तुम याद आ गयी तभी
मैंने आंसुओं को गिरने नहीं दिया धरती पर
मैंने तुम्हें थाम लिया अंजुरी में
और सौंप दिया सीप को
ताकि मोती बना सकूं

ठीक उस वक्त जब कवि
तड़प रहा था विरह में
प्रेयसी दीप सजा रही थी दिवाली के
कवि रोता रहा रात भर
कविताएँ बनती चली गयी
इस तरह कट गयी  रात

बाकी हैं अभी कई रातें
कवि रचेगा असंख्य कविताएँ
अपने अश्कों  से

- तुम्हारा कवि

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