आज तीसरे दिन का
तीसरा पहर भी बीतने को है
उदास सूरज पहुँच गया है क्षितिज पर
किन्तु खत्म नहीं हुआ
मेरा इंतज़ार
जाते -जाते सूरज ने भी पढ़ा था मेरा चेहरा
और उदास हो गया था उसका चेहरा
पता नहीं कैसे भांप लिया था उसने
मेरे भीतर की उदासी
जबकि मैं मुस्कुरा रहा था लगातर
तीसरा पहर भी बीतने को है
उदास सूरज पहुँच गया है क्षितिज पर
किन्तु खत्म नहीं हुआ
मेरा इंतज़ार
जाते -जाते सूरज ने भी पढ़ा था मेरा चेहरा
और उदास हो गया था उसका चेहरा
पता नहीं कैसे भांप लिया था उसने
मेरे भीतर की उदासी
जबकि मैं मुस्कुरा रहा था लगातर
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