Monday, December 7, 2015

हर रिश्ते पर संदेह होने लगा है हमें

यहाँ आदमी को आदमी से डर लगता है
और मैं रोज-रोज पढ़ रहा हूँ
मानव सभ्यता की कहानी
धरती पर मौजूद लगभग सभी प्राणियों का विश्वास 
खो दिया है हमने
अब मनुष्य खुद से डरा हुआ है
विश्वास के सभी पैमानों को फेंक कर
बहुत आगे निकल चुके हैं हम
इतना आगे कि, अब
हर रिश्ते पर संदेह होने लगा है हमें
और हमारे समाज के हर कोने में ,
हर ठेके पर,
मंदिरों में, स्कूलों में
लगा रहे हैं हम
'मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है' का पोस्टर
जबकि आज सभी जानते हैं
मानवता ही संदेह के घेरे में हैं
मैंने पूछा तम्हारा नाम
तो, नाम के बदले पूछा जाता है
नाम पूछने के पीछे का कारण
मानवता अब किताबों और दीवारों पर चिपक कर रह गयी है
जबकि उसके प्रेम ने मुझे अहसास कराया मेरे मनुष्य होने का
और मेरा संदेह उसी पर
मेरे भीतर का अमानव मरा नहीं अभी
कि कर सकूँ आँख मूंद कर तुम पर भरोसा
देखो आज भी कितना कमज़ोर हूँ मैं ......

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