Wednesday, April 26, 2017

नि:शब्द है हमारा दर्द

नि:शब्द है 
हमारा दर्द 
आओ,
आँखों से साझा करें इसे 
हम, एक -दूजे से

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...