Monday, January 22, 2018

हक़ीकत से वाकिफ़ होते हुए भी

और एकदिन पड़ा रहूँगा
किसी सड़क पर
सूखे हुए किसी पत्ते की तरह
जानता हूँ
भविष्य का आभास होते हुए भी
विचलित नहीं हुआ हूँ अबतक
ये उस प्रेम का कमाल है शायद
जिसकी कल्पना के दायरे में
केवल तुम्हारा चेहरा है
हक़ीकत से वाकिफ़ होते हुए भी
बहुत रूमानी लगता है मुझे
मेरे प्रेम की काल्पनिक दुनिया |
बिजुरी / २३ जनवरी २०१६

1 comment:

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