झम झम गिरते
बारिश की बूंदों को देखता रहा
उनके कदम तालों को
मग्न होकर सुनता रहा
कभी रवि ठाकुर को
कभी बाबा की पंक्तियों को
याद करता रहा
"जल पड़े
पाता नड़े " या
धिन- धिन -धा"
वाह रे काली घटा
तान सेन ने ली होगी
कभी तुम्ही से संगीत की शिक्षा
हे बारिश के बूँद
हे मेघ दूत
तुम्ही से मिली थी शायद
कालीदास को प्रेरणा ..
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
-
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
-
बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
-
वे सारे रंग जो साँझ के वक्त फैले हुए थे क्षितिज पर मैंने भर लिया है उन्हें अपनी आँखों में तुम्हारे लिए वर्षों से किताब के बीच में रख...
No comments:
Post a Comment