Monday, September 27, 2010

जैसे मिलते हैं -

कहीं कभी किसी दिन
हम दोनों मिल जाएं
जीवन के किसी राह पर
तब क्या हम
मिल पायेंगे
ठीक पहले की तरह ?
अक्सर मेरे मन में
यह सवाल उठता है
उस वक्त
शायद हम याद करेंगे
उस पल को
जब हम बिछड़े थे
एक - दुसरे से

मिलन से भी कठिन होगा
मिलन को यादगार बनाना
मन में उठे सवालों का
तब हम जवाब खोजेंगे
और
खोजेंगे कुछ शब्द
एक -दुजे को संबोधित करने के लिए
और सोचेंगे यह कि
कौन था जिम्मेदार
हमारे बिछड़ने का
ताकते रहेंगे एक -दुसरे का चेहरा
कुछ छ्णों तक
शर्म भरी आँखों से
देखेंगे
एक - दुसरे  कि आँखों में
और शायद -
बनावटी खुशी की एक चादर
ओड़ने का प्रयास करेंगे
अपने चहरों पर
फिर से
एक औपचारिक मिलन बन जायेगा
यह मिलन
जैसे मिलते हैं -
दो अजनबी कभी - कभी
किसी सुनसान सड़क पर .

6 comments:

  1. भावनाएं सच्ची हैं और कविता अच्छी है। यदी दोहरा व्यक्तित्व लोग छोड़ दें तो मज़ ही आ जाए। डॉ अभिजित् जोषी हैदेराबाद विश्व विद्यालय

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  2. खोजेंगे कुछ शब्द
    एक -दुजे को संबोधित करने के लिए
    और सोचेंगे यह कि
    कौन था जिम्मेदार
    हमारे बिछड़ने का
    बहुत अच्छी लगी आपकी रचना। सम्बन्ध टूट जाने पर बस एक दूसरे पर दोश मढना ही याद रहता है। कई बार तो औपचारिकता भी नग्ण्य ही रहती है। बधाई इस रचना के लिये।

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  3. बहुत ही अच्छी रचना । बधाई

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  4. इस उत्तम रचना पर आपको ढेर साडी बधाई ,ऐसे ही हिंदी साहित्य को आगे ले जाए .

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  5. aap jaise kaviyon ki aaj bhartiye sahitya ko bahut jaroorat hai...

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