संजोकर रखा था
जो यादें तुम्हारी
मैंने अपने दिल में
वे भी अब बिखरने लगी है
मेरी तरह
बार -बार उन्हें
फिर से समेटने की कोशिश करता हूँ
पर टूटा हुआ आदमी
कहाँ समेट पाता है कुछ ?
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
पर टूटा हुआ आदमी
ReplyDeleteकहाँ समेट पाता है कुछ ?
uffff sach kaha aapne..bahut khoob.