Tuesday, October 6, 2009

इन्सान समझ नही पता है

शाम को
आकाश में जब
सूरज ढलता है
याद दिलाता है कि
जीवन का सच क्या है
इन्सान तो बेकार ही
भाग रहा है
बिना किसी उद्देशेय के
उसे मालूम ही नही कि
उसे जाना कहाँ है
इन्सान को रोज
सिखाता है
आकाश का सूरज
इन्सान समझ नही पता है.

2 comments:

  1. सही कहा की इन्सान समझ नहीं पाता है. कभी-कभी वो चीजों को देख कर भी समझना नहीं चाहता है और जब तक वो समझता है तबतक देर हो चुकी होती है. अच्छी रचना है.

    ReplyDelete
  2. really a great creation of urs...

    ReplyDelete

युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....

. 1.   मैं युद्ध का  समर्थक नहीं हूं  लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी  और अन्याय के खिलाफ हो  युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो  जनांदोलन से...