साथी अब हाथ नही बढाता
साथी अब हाथ खीचता है पीछे
साथी अब जान चुके हैं
बाजारवाद - पूंजीवाद का स्वाद ।
उसे शायद लगा है
मीठा इसका स्वाद
तभी तो ख़ुद को बेचकर
वह सपने खरीदने लगा है ।
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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गाँधी ने पहनी नहीं कभी कोई टोपी फिर उनके नाम पर वे पहना रहे हैं टोपी छाप कर नोटों पर जता रहे अहसान जैसे आये थे बापू इस देश मे...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
punjivaad system me har koi ek dusre ka shoshan karta hai /
ReplyDeletebeautiful composition