आजाद भारत का जो सपना
देखा था बापू ने
काटा है उसे देश के
वर्तमान नेताओं के चाकू ने ।
मरते हैं लोग
पकते हैं भोग राजधानी में
मानते हैं शोक दिखाव के ।
अनाज भरे हैं देश के
गोदामों में , फिर
चूल्हा किउन
ठंडा हैं झोपडो में ?
धुआं किउन भरा है उनके फेफडो में
जो रहते हैं उन झोपडो में ?
देश की जो जनता हैं
उनमे नही एकता है
वे लड़ते हैं
हम लड़ते हैं आपस में
कभी मन्दिर पर
कभी मस्जिद पर ।
उगता है रवि
लिखते हैं कवि
बिकते हैं सभी ।
बोलते हैं झूट
करते हैं लूट
खुले आम
सरेआम
बढ़िया करते हैं
बस यही काम
विदेशियों से करते हैं
देश का मोल भाव ।
Saturday, October 31, 2009
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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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