खाकी का डर
आज भी जारी है बदस्तूर
मरती हैं आज भी जनता सरेआम बेक़सूर ।
आज भी करते हैं उन्हें हम
जी हजूर - जी हजूर
आज है जनता मजबूर
पहले से अधिक ।
गोरों की गुलामी बेहतर थी
इस बदतर आज़ादी से
तब गुलामी का बहाना था
आज़ादी का क्या बहाना ?
वेरिफिकेशन , पासपोर्ट और सब
जो हैं उनके हाथों में
होता नही कुछ भी
विना रिश्वत के ।
धरती के देवता समझते ख़ुद को मेरे देश के
खाकी वाले ।
उन्हें आता है
जब कोई बेक़सूर असहाय होकर
मांगता है अपने प्राणों की भीख
उनके आगे हाथ जोड़कर ।
ले जाकर थाने उसे
करते हैं उसकी पिटाई
गुजरात , मुंबई और पूरा भारत
गवाह है
मेरे देश में वर्दी वालों की हवा है ।
kya chot ki hai...
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