Sunday, October 25, 2009

मेरा घर

मैं जैसे जीता हूँ
कह नही सकता
लिख नही सकता
मैं कैसे जीता हूँ ।
मैं जिस घर में रहता हूँ
वह मेरा है
मैं ऐसा सोचता हूँ
वह घर नही सोचता ऐसा

मैं सोचता हूँ जैसा ।
वे सभी मेरे अपने हैं
जो उस घर में रहते हैं
मैं उनका अपना नही
बन सका आजतक
वह घर
जो दिवारओं घिरा है
वो दिवार
जो मूक हैं
सदिओं से
मैं भी मूक रहना चाहता हूँ
उसी तरह
कुछ भी कहना नही चाहता हूँ
उस घर के बारे में
किउंकि
वहां सब मेरे अपने हैं
जिस घर में मैं रहता हूँ
.

1 comment:

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