खो जाना चाहता हूं
वसंत पवन में
धूप में
ज्योत्स्ना में
पंछियों के मधुर सूर में .........
लौटा पाओगे मुझे
पृथ्वी का खोया हुआ यौवन ?
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
आज की इस स्वार्थ भरी दुनिया में भाई-भाई का नहीं होता, लोग माँ-बाप के नहीं होते। उनसे क्या उम्मीदें की जाएँ जो अपनी माँ के नहीं हुए, वे धरती माँ के क्या होंगे!
ReplyDelete