एक दीर्घ विश्राम
के पश्चात आज
कागज –कलम
एक साथ है
बहुत कुछ
जमा हो गया है ,मन में
कुछ सुनहरे
और कुछ गाद की तरह
अब तीब्र बेचैनी है
बाहर निकलने की
कविता का रूप लेना चाहती है,
स्मृति और भावनाओं का ढेर
जो पकते रहे मेरे भीतर
विश्राम काल के दौरान
अभी पतझड़ का मौसम है
नग्न है सभी पेड़
नमीहीन हवा बहती है
धुल उड़ाती हुई
कुछ पक्षी जो
बचे हुए हैं
अपने संघर्ष के दम पर
कहीं छिप गए हैं
नए पत्तों के उगने के साथ
लौट आयेंगे
भरोसा है मुझे ..............
एक दीर्घ विश्राम
ReplyDeleteके पश्चात आज
कागज –कलम
एक साथ है
बहुत कुछ
जमा हो गया है ,मन में
कुछ सुनहरे
और कुछ गाद की तरह
swagat hai punaraagaman ka.
धन्यवाद शुक्ला जी
ReplyDeleteकुछ पक्षी जो
ReplyDeleteबचे हुए हैं
अपने संघर्ष के दम पर
कहीं छिप गए हैं
नए पत्तों के उगने के साथ
लौट आयेंगे
भरोसा है मुझे ......... कहीं और हो न हो , अपने अन्दर एक सुन्दर वन है
आभार रश्मि जी
ReplyDeleteपंछी जरूर लौटेंगे .... शंड भी तो वापस आ गए ... बैचैन हैं बाहर निकलने कों ...
ReplyDeletesHUKRIYA DIGAMBER JI
Deleteकविता भी अवश्य बाहर निकलेगी..............पल्लवित होगी.........फलेगी फूलेगी....
ReplyDeleteसादर
अनु
jab bhi aaye, aisa laaye k man ko bhaye....
Deletelambe samay k baad ki rachna, arthpurn hai.
बहुत आभार अनु जी ........
Deleteआप हर बार मेरा हौसला बढ़ाती हैं सुनीता जी इसीलिए जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है हर बार . दिल से आभार आपका ......
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