कठोर से कठोर हो रहा है समय
और तुम गुज़र रहे हो कठिन संघर्ष से पल-पल
और तुम्हारी पीड़ा से गुज़र रहा हूँ मैं
सत्ता को न अहसास है न ख़बर
सोचना होगा हमें मिलकर
इस पीड़ा से मुक्ति का मार्ग
और इसलिए मैं लगातर सोच रहा हूँ तुम्हें
और लिख रहा हूँ
रोज एक प्रेम कविता
तुम्हारे लिए
मेरी अनुपस्थिति में रोज पढ़ना तुम
इन्हें
और तुम गुज़र रहे हो कठिन संघर्ष से पल-पल
और तुम्हारी पीड़ा से गुज़र रहा हूँ मैं
सत्ता को न अहसास है न ख़बर
सोचना होगा हमें मिलकर
इस पीड़ा से मुक्ति का मार्ग
और इसलिए मैं लगातर सोच रहा हूँ तुम्हें
और लिख रहा हूँ
रोज एक प्रेम कविता
तुम्हारे लिए
मेरी अनुपस्थिति में रोज पढ़ना तुम
इन्हें
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