धरती ने क्या चाहा
नहीं पता आकाश को
किसान को पता था
और किसान मर गया
एकदिन भूख से
नहीं पता आकाश को
किसान को पता था
और किसान मर गया
एकदिन भूख से
सागर की चाहत
चाँद को पता थी
नदी का मार्ग किसे पता था !
चाँद को पता थी
नदी का मार्ग किसे पता था !
रिश्तों की नींव हिल रही है
अविश्वास और औपचारिकता के दायरे में
अविश्वास और औपचारिकता के दायरे में
यह वक्त
संदेहमुक्त होने का वक्त है
यह खुद को पहचानने का वक्त है
संदेहमुक्त होने का वक्त है
यह खुद को पहचानने का वक्त है
जिन्दगी जब भरोसा नहीं करती खुद पर
मौत से वफ़ा सीखने का वक्त है
मौत से वफ़ा सीखने का वक्त है
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