मेरी कई प्रेम कविताएं
खो गई हैं
देखना यह है कि
अब कितना प्रेम बचा हुआ है
मुझमें
उन कविताओं के बाहर !
खो गई हैं
देखना यह है कि
अब कितना प्रेम बचा हुआ है
मुझमें
उन कविताओं के बाहर !
नफ़रत के इस दौर में
आसान नहीं है प्रेम को बचाए रखना
इसलिए,
हमने उसे कविताओं में भर दिया था
अब जब कवियों की भी हत्या होने लगी है
कविता को कौन बचाएगा
आसान नहीं है प्रेम को बचाए रखना
इसलिए,
हमने उसे कविताओं में भर दिया था
अब जब कवियों की भी हत्या होने लगी है
कविता को कौन बचाएगा
अपने ही विराट महल में कैद हिंदुस्तान के अंतिम शहंशाह
बहादुर शाह ज़फर ने जब लिखा था -
"क्या गुनह क्या जुर्म क्या तक़्सीर मेरी क्या ख़ता
बन गया जो इस तरह हक़ में मिरे जल्लाद तू "
बहादुर शाह ज़फर ने जब लिखा था -
"क्या गुनह क्या जुर्म क्या तक़्सीर मेरी क्या ख़ता
बन गया जो इस तरह हक़ में मिरे जल्लाद तू "
अब जब प्रेम पर पहरेदारी के लिए
तैयार हैं सरकारी दस्ते
मैं अपनी खोई हुई प्रेम कविताएं खोज रहा हूँ !
तैयार हैं सरकारी दस्ते
मैं अपनी खोई हुई प्रेम कविताएं खोज रहा हूँ !
No comments:
Post a Comment