Saturday, December 23, 2017

अतुल्य भारत का"अतुल्य ईश्वर"

ख़ुद को फ़क़ीर घोषित कर देने भर से
कोई फ़क़ीर नहीं हो जाता
जिसके स्वागत में खड़े हो जाते हैं लाखों सेवक 
मरने -मारने को बिना सोच -विचार के
वह किसी कंपनी के बाबा द्वारा घोषणा के बाद भी
ऋषि या संत नहीं होता
हाँ, अक्सर क़ातिल को ही
ईश्वर का अवतार या वरदान मान लिए जाने की
परम्परा प्राचीन है इस देश में
ईश्वर या उसका अवतार जो मौत के बदले या उसके अनुसार
तय कर देता है किसी की मौत
उसकी हत्या को पाप के किसी श्रेणी में नहीं रखा जाता कभी भी
ईश्वर अंतिम हत्या का आदेश कब देगा
किसी को नहीं पता
मतलब उसके पाप के अंत का
किसी को नहीं पता
किन्तु , हमने कहानी और कथाओं में ज़रूर सुना है कि
हर पाप का अंत निश्चित है एक दिन
हैरानी यह कि
उस एक दिन का पता
किसी को नहीं है
भक्त इसे ईश्वर की लीला या माया कहते हैं
जिसे सामान्य जन कभी समझ नहीं पाया है
धन्य है हमारा देश
जहाँ प्रदेश और जलवायु के अनुरूप ईश्वर ने
अपना रूप -रंग बदल कर पत्थरों की मूर्तियों के रूप में
खुद को स्थापित किया
कैलेंडरों में छप गये
पूजा की विधि तय की
और भव्य देवालयों का निर्माण किया भक्तों ने
धन्य हैं वे भक्त
जिन्होंने देवों की भाषा समझ लिया
आम जन को उनका अनुयायी बनाया
लाखों -करोड़ों दान
जिसका कोई हिसाब लेने वाला नहीं
कोई इनकम टैक्स नहीं
देवता किसी देश का नागरिक भी नहीं
वह मतदान नहीं करता
सरकार नहीं चुनता
सरकार उन्हें चुनती है
अपने फायदे के लिए
कोई अदालत नहीं उनके लिए जहाँ देनी पड़े उन्हें
सफाई उनके नाम पर लिए गये किसी फैसले के विरोध में
देवता को सब माफ़ है
भक्तों को भी खुली छूट है
अपनी मन -मर्जी की !
जबावदेही केवल आम जन की है |
अतुल्य भारत का"अतुल्य ईश्वर"!

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