कहीं कभी किसी दिन
हम दोनों मिल जाएं
जीवन के किसी राह पर
तब क्या हम
मिल पायेंगे
ठीक पहले की तरह ?
अक्सर मेरे मन में
यह सवाल उठता है
उस वक्त
शायद हम याद करेंगे
उस पल को
जब हम बिछड़े थे
एक - दुसरे से
मिलन से भी कठिन होगा
मिलन को यादगार बनाना
मन में उठे सवालों का
तब हम जवाब खोजेंगे
और
खोजेंगे कुछ शब्द
एक -दुजे को संबोधित करने के लिए
और सोचेंगे यह कि
कौन था जिम्मेदार
हमारे बिछड़ने का
ताकते रहेंगे एक -दुसरे का चेहरा
कुछ छ्णों तक
शर्म भरी आँखों से
देखेंगे
एक - दुसरे कि आँखों में
और शायद -
बनावटी खुशी की एक चादर
ओड़ने का प्रयास करेंगे
अपने चहरों पर
फिर से
एक औपचारिक मिलन बन जायेगा
यह मिलन
जैसे मिलते हैं -
दो अजनबी कभी - कभी
किसी सुनसान सड़क पर .
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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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भावनाएं सच्ची हैं और कविता अच्छी है। यदी दोहरा व्यक्तित्व लोग छोड़ दें तो मज़ ही आ जाए। डॉ अभिजित् जोषी हैदेराबाद विश्व विद्यालय
ReplyDeleteखोजेंगे कुछ शब्द
ReplyDeleteएक -दुजे को संबोधित करने के लिए
और सोचेंगे यह कि
कौन था जिम्मेदार
हमारे बिछड़ने का
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना। सम्बन्ध टूट जाने पर बस एक दूसरे पर दोश मढना ही याद रहता है। कई बार तो औपचारिकता भी नग्ण्य ही रहती है। बधाई इस रचना के लिये।
बहुत ही अच्छी रचना । बधाई
ReplyDeleteइस उत्तम रचना पर आपको ढेर साडी बधाई ,ऐसे ही हिंदी साहित्य को आगे ले जाए .
ReplyDeleteaap jaise kaviyon ki aaj bhartiye sahitya ko bahut jaroorat hai...
ReplyDeleteshukriya aap sabka
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