Friday, April 27, 2012

मेरी तन्हाई में साझेदार है

रात की तन्हाई
क्या बताऊँ तुम्हे
मेरी तन्हाई में
साझेदार है

उधर रात जागती  है मेरे लिए
इधर मैं ,
कहीं रात भी
बेवफा न समझ ले मुझे
उनकी तरह ..........

6 comments:

  1. बेहतरीन भाव संयोजन ।

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  2. बहुत सुंदर अहसास...

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  3. वाह...............
    बहुत सुंदर.

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  4. इसे कहते हैं प्यार :)

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  5. बहुत शुक्रिया आप सभी का

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...