Sunday, August 5, 2012

यशगान , अपने –अपने होने का

वे, जो गा रहे हैं 
यशगान , अपने –अपने होने का 
आर्य महान 
डूबे हए हैं घृणित कृत से 
सर से पांव तक |

ऊँची है इनके
कुँए की दीवारें

ये सभी
उबाल कर खाते हैं
दलित का, गरीब के हिस्से का अनाज |

रात के ..
कुकर्म के बाद
अर्घदान करते हैं रवि को
आकाश का सूरज मुस्कुराता है
इनकी बुद्धि पर
कभी –कभी मैं भी .....||

2 comments:

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...