वे, जो गा रहे हैं
यशगान , अपने –अपने होने का
आर्य महान
डूबे हए हैं घृणित कृत से
सर से पांव तक |
ऊँची है इनके
कुँए की दीवारें
ये सभी
उबाल कर खाते हैं
दलित का, गरीब के हिस्से का अनाज |
रात के ..
कुकर्म के बाद
अर्घदान करते हैं रवि को
आकाश का सूरज मुस्कुराता है
इनकी बुद्धि पर
कभी –कभी मैं भी .....||
यशगान , अपने –अपने होने का
आर्य महान
डूबे हए हैं घृणित कृत से
सर से पांव तक |
ऊँची है इनके
कुँए की दीवारें
ये सभी
उबाल कर खाते हैं
दलित का, गरीब के हिस्से का अनाज |
रात के ..
कुकर्म के बाद
अर्घदान करते हैं रवि को
आकाश का सूरज मुस्कुराता है
इनकी बुद्धि पर
कभी –कभी मैं भी .....||
वाह!!!!!!
ReplyDeleteअनु
शुक्रिया अनु जी
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