मैं रोज देखता हूँ सपना
तुम्हारे लिए
तुम सब मुस्कुरा रहे हो
फूलों की तरह
धरती के इस गुलिस्तां में
और मैं, बनकर एक माली
संवार रहा हूँ तुम्हें .....
हे नन्हे फरिश्तों
तोड़कर सब भेद
तुम्हारे लिए
तुम सब मुस्कुरा रहे हो
फूलों की तरह
धरती के इस गुलिस्तां में
और मैं, बनकर एक माली
संवार रहा हूँ तुम्हें .....
हे नन्हे फरिश्तों
तोड़कर सब भेद
तुम आना मेरे इस
सपनों के बगीचे में
करना साकार मेरे निष्पाप स्वप्न को
और ले जाना
अपने –अपने हिस्से की
मीठी –मीठी मुस्कान
सपनों के बगीचे में
करना साकार मेरे निष्पाप स्वप्न को
और ले जाना
अपने –अपने हिस्से की
मीठी –मीठी मुस्कान
वाह!!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...सुकोमल रचना...
अनु
shukriya
Deleteभावमय करती प्रस्तुति।
ReplyDeletemain bhi dekhna chahta hoon sapna:)
ReplyDeletesach me komal rachna....
Shukriya Aap sabhi mitron ka. Swagat hai Mukesh ji..
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