Sunday, November 15, 2015

मैं अपने पापों की पोटली ढो रहा हूँ नदी किनारे

ट्रेन पहुंच चुकी है गंतव्य पर
मुसाफ़िर के साथ
रात के आकाश पर फ़ैल गया है अंधकार
उदासी में खो गया चाँद
मैं अपने पापों की पोटली ढो रहा हूँ नदी किनारे 
गंगा भीग चुकी हैं
अपने ही आंसुओं में
मैं रात भर सो नहीं पाया
तुमसे लड़ने के बाद
आओ मिल जाएँ हम फिर से
तुम सागर बन जाओ
मैं नदी बन जाऊंगा ...
इंतज़ार में..

चित्र : गूगल से साभार |

2 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, नहीं रहे हरफनमौला अभिनेता सईद जाफरी - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत धन्यवाद .....आभारी हूँ .....सादर !

      Delete

युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....

. 1.   मैं युद्ध का  समर्थक नहीं हूं  लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी  और अन्याय के खिलाफ हो  युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो  जनांदोलन से...