समय के कालचक्र में रहकर भी
टूटी नही है कवि की प्रतिबद्धता
उम्र कुछ बढ़ी जरूर है
पर हौसला बुलंद है
बूढ़े बरगद की तरह
नई कोपलें फूटने लगी है फिर से
उम्मीदे जगाने के लिए
उन टूट चुके लोगों में ...
कमजोर पड़ती क्रांति
फिर बुलंद होती है
कवि भूल नही पाता
अपना कर्म
कूद पड़ता है फिर से
संघर्ष की रणभूमि पर
योध्या बनकर
कमजोर पड़ती क्रांति
फिर बुलंद होती है
कवि भूल नही पाता
अपना कर्म
कूद पड़ता है फिर से
संघर्ष की रणभूमि पर
योध्या बनकर
तिमिर में भी लड़ता एक दीया
तूफान को ललकारता
लहरों से कहता -
आओ छुओ मुझे
या बहाकर ले जाओ
हम भी तो देखें
हिम्मत तुम्हारी ....