Saturday, December 12, 2009

भूल गया था मैं तुम्हें

एक लंबे अन्तराल के बाद
आज फिर
तुम मुझे याद आए
अचानक .....
पर क्या
सच में भूला  था तुम्हें  ?
मेरी आदत नही
भूले हुए को याद करना

कब भूला मैं
तुम्हें
कब तुम याद आए मुझे ?
इस भूलने और याद आने के दरमियाँ
मैं  जीता रहा
ऊम्र बीतती रही हमारी
किंतु,
हर वक्त
एक परिचित चेहरा रहा मेरे आसपास
हर पल
उसे ही आँखों में लेकर
भटकता रहा
भीड़ में तन्हा
एक महानगर में ।

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...