Friday, December 13, 2013

वो शाम

याद है तुम्हें वो शाम 
जब हम साथ बैठे बरामदे में 
और पी रहे थे चाय एक ही प्याली में बारी -बारी 
मैं भूल नही पाया हूँ 
तुम्हारे स्पर्श को आज तक 

मुझे आज भी याद है 
वो साईकिल की सवारी 
जब तुम बैठती थी अगले हिस्से पर 
और मैं मारता पैडल 
हम पहुँचते युनिवर्सिटी तक
चढाई आने पर जब मेरी
सांसे फूलती
और तुम होती बेचैन
मैं देखता तुम्हारी आँखों में
और पिघल जाता
याद है तुम्हे वो पल ?
नही न ,

जाने दो
यह जरुरी नहीं कि
तुम्हे भी याद रहे
सभी बातें ...
पर यदि कभी लगे कि
खोई हुई यादें चाहिए तुम्हें
ले जाना मुझसे आकर ...
मैंने इन्हें संजोकर रखा है तुम्हारे लिए ..

Wednesday, November 20, 2013

फैक्ट्रियां

जरूरतों की आपूर्ति के लिए 
बनाई गई फैक्ट्रियां,
ये फैक्ट्रियां अब 
बना रही हैं 
बढ़ा रही हैं रोज 
हमारी जरूरतें 

आदमी पहले भी 
बिकता था 
आज भी बिकता है

Friday, October 25, 2013

उस तत्व की खोज

रात भर तेज बारिश के बाद 
सुबह धुले -उजले पत्तों को देखना 
बड़ा सुखद होता है 
तब सोचता हूँ 
कि , पिछली बार 
जिन लाखों लोगों किया था 
संगम पर गंगा स्नान 
क्या इन पत्तों सा चमकता है 
उनका मन और विचार ?

पर्णहरित या क्लोरोफिल नामक जो तत्व
मौजूद है इन पत्तों में
बनाते हैं जीवन भर
भोजन वृक्ष के लिए
हममें वह कौनसा तत्व है
जो उकसाता है हमें
दूसरों का भोजन छीनने के लिए ?

Thursday, September 26, 2013

दोस्ती और दुश्मनी के बीच

दोस्ती और दुश्मनी के बीच
बचा हुआ रहता है
एक रिश्ता, किन्तु 
अभी तक हम खोज नही पाए हैं
कोई मुकम्मल नाम इसका 


यकीनन हम सभी तलाशते रहते हैं
मिठास और कडवाहट से परे
कुछ क्षणों के लिए शिथिल पड़ चुके
रिश्ते के लिए 
एक मकबूल नाम
जिससे कर सके संबोधन
एक –दूजे को

हम मनुष्य हैं
और हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है
कि हम अलग नही कर पाते
अपने अहं को
हमारी अपेक्षा हमेशा
दूसरों से ही होती है
और इसी तरह बनी रहतीं हैं दरारें
रिश्तों में
जिसे भर नही पाता

कोई भी सीमेंट 

Wednesday, September 4, 2013

नही उगा पाये हम कभी अमन के फूल ....

अमन के वास्ते 
हमने बाँट ली 
अपनी -अपनी सरहदें 
पर हर नई सरहद ने जन्म दिया 
एक नई जंग को 
अपने -अपने चमन में 
नही उगा पाये हम 
कभी अमन के फूल ....
और मरते रहें 
अपनी -अपनी मौत .......

Sunday, August 11, 2013

खोजता हूँ एक जंगल

धम्म स्स्स SSSS....
भूस्म ....भौं ..भौं 
गर्र... गर्रर .......
हूस्स ...धत्त ....

जी हाँ ,इनदिनों 
कुछ ऐसी ही भाषा में 
बात कर रहे हैं मेरे समाज में लोग 
आपकी तरह 
मैं भी सुनता हूँ 
पर उस समय मैं
खोजता हूँ एक जंगल
अपने आसपास
मैं कुछ जानवर खोजता हूँ

मन करता है
जंगल में जाकर खींचू उनकी कुछ तस्वीरें
तस्वीर खींचते हुए मुझे देख
वे समझ लेंगे
मैं आया हूँ
इक्कीसवीं सदी की इंसानी जंगल से |

Sunday, July 28, 2013

-ज़मीर से हारे हुए लोग

उन्होंने खूब लिखा सत्य के पक्ष में 
किन्तु यह सत्य 
औरों का था 
उन्होंने सार्वजनिक बयान दिया 
कि नही हटेंगे सत्य के मार्ग से 

फिर एक वक्त आया
उन्हें परखने का
जैसा हम सबके जीवन में आता है
कभी न कभी
अपने स्वार्थों के खातिर वे खामोश रहें
सत्य ने उन्हें पुकारा
कि ...फिर दोहराव
अपना पक्ष
पर उन्हें डर था कि
सच बोलने पर बिखर जायेंगे रिश्ते
और पूरे नही होंगे कुछ सपने

किन्तु सत्य ने हार नही माना
सदा की तरह अडिग रहा
पर ...
इसी तरह सत्य ने भी देख लिया उनका चेहरा
और
एक नाम दिया उन्हें
-ज़मीर से हारे हुए लोग 

Wednesday, July 10, 2013

छल कर चले गये कुछ

दोस्त बनकर जो आये थे 
छल कर चले गये कुछ 
मेरा अपराध 
कि मैंने नही की 
उनकी चाटुकारिता 

जाम से जाम टकराते वक्त 
बांधते रहे वे 
मेरी तारीफों की पुल 
और मैं 
मुस्कुराता रहा
राज्य सभा में अपमानित
द्रौपदी की तरह .....

Thursday, June 20, 2013

खूब लिखीं हमने कविताएँ खूब गाये हैं गीत ..........

खूब लिखीं 
हमने कविताएँ 
बहुत गाये गीत 
कहीं कुछ
बदलाव न आया
बिछड़ गये मन मीत |

सबने पढ़ी
सबने सुनी
कुछ सपनों की चादर बुनी
वही पुरानी रीत
कुछ दिनों में
भूल गये सब
मेरा रुदन गीत |

इतिहास कुछ
बदल न सका
कोई पत्थर
तोड़ न पाया
टूट चुकी है
हिम्मत की रीढ़
यूँ ही बढ़ती जा रही है
मेरे शहर की भीड़

खूब लिखीं हमने कविताएँ
खूब गाये हैं गीत .................||

Friday, June 14, 2013

ये किस पक्ष के लोग हैं ...?

कठिन वक्त पर खामोश रहना 
मासूमियत नही 
कायरता है 
और 
वे सब खामोश रहें 
अपने -अपने बचाव में 
और वक्त को बनाया ढाल 
खामोशी के पक्ष में 

जब बोलना था 
तब कुछ न बोले 
जब भी बोले
अपने बचाव में बोले

ये किस पक्ष के लोग हैं ...?

Wednesday, June 12, 2013

तुम्हारे पक्ष में ...

हाँ यही गुनाह है 
कि मैं खड़ा हूँ तुम्हारे पक्ष में 
यह गुनाह राजद्रोह से कम तो नही 
यह उचित नही 
कि कोई खड़ा हो
उन हाथों के साथ जिनकी पकड़ में
कुदाल ,संभल , हथौड़ी ,छेनी हो
खुली आँखों से गिन सकते जिनकी हड्डियां हम
जो तर है पसीने से
पर नही तैयार झुकने को
वे जो करते हैं
क्रांति और विद्रोह की बात
उनके पक्ष में खड़ा होना
सबसे बड़ा जुर्म है ....

और मैंने पूरी चेतना में
किया है यह जुर्म बार -बार ..

Tuesday, June 11, 2013

क्रांति के लिए

अपने आवारा दिनों में 
मैं भी नंगे पैर घास पर चलता रहा 
महाकवि 'वॉल्ट व्हिटमॅन' की तरह 

मैं सोचता रहा 
अपने मन में पल रहे विद्रोह के बारे में
मैंने 'नजरुल' को पढ़ा
गौर से देखता रहा मेरे आसपास की हर घटना को
मैं सुनता रहा
तुम सबकी बातें
मेरे आस -पडोस में लोगों ने
जमकर मेरी आलोचना की

मैंने 'कबीर' को सोचा उस वक्त
तभी मुझे याद आई
'सुकरात' की कहानी
फिर अचानक
मेरे मस्तिक में उभरने लगा क्रांति में शहीद हुए
क्रांतिकारियों का रक्तिम चेहरे
शासन के हाथों घायल होते हुए भी
बंद मुट्ठी लिए
क्रांति के लिए
उठे हुए लाखों हाथ

मैंने अपने कांपते तन -मन को
संभालने की नाकाम कोशिश की
अचानक मैंने भी मुट्ठी बनाकर
इन्कलाब कहकर
आकाश की ओर उठा दिया अपना हाथ

Sunday, June 2, 2013

जल आन्दोलन







जल आन्दोलन में 
वे सबसे आगे रहे 
पानी पर लिखी उन्होंने ढेरों कविताएँ 
किसान की कथा लिखी कागजों पर 
कुछ ने उन्हें जनकवि कह दिया 
अपनी विचारधारा के पक्ष में 
उन्होंने भी की लंबी -लंबी बातें 
आजकल उनकी सभाओं में 
बड़ी कम्पनी का बोतलबंद पानी आता है ..

Friday, May 10, 2013

गांवों का देश भारत

नर्मदा से होकर 
कोसी के किनारे से लेकर 
हुगली नदी के तट तक 
रेतीले धूल से पंकिल किनारे तक 
भारत को देखा 
गेंहुआ रंग , पसीने में भीगा हुआ तन 
धूल से सना हुआ चेहरे
घुटनों तक गीली मिटटी का लेप
काले -पीले कुछ कत्थई दांत
पेड़ पर बैठे नीलकंठ
इनमें देखा मैंने साहित्य और किताबों से गायब होते
गांवों का देश भारत

दिल्ली से कहाँ दीखती है ये तस्वीर ...?
फिर भी तमाम राजधानी निवासी लेखक
आंक रहे हैं ग्रामीण भारत की तस्वीर
योजना आयोग की तरह ....



*मध्य प्रदेश से होकर बिहार ,बंगाल की यात्रा के बाद लिखी गई एक कविता 

Sunday, April 7, 2013

मैंने तुम्हें देखा नही नजरों से

मैंने तुम्हें देखा नही नजरों से 
सुनी है तुम्हारी आवाज़ पल भर 
मेरे दिल की धड़कन क्यों बढ़ने लगी 
पता है तुम्हें कुछ ?

मैंने देखा नही है 
तुम्हारा चेहरा 
पर बना लिया है एक चेहरा 
मन की दीवार पर 
कभी देखना आकर 
क्या यह तुम ही हो ?

यदि ठीक न बनी  हो सूरत
तो पोत देना कालिख मेरे चेहरे पर
 अफ़सोस न होगा मुझे

बस  भूल पर 
अपनी मुस्कुरा दूँगा 
हंसी की भाषा तो तुम्हें आती होगी ...
------------

केस्च गूगल से  साभार 

Saturday, March 30, 2013

टूटी नही है प्रतिबद्धता

समय के कालचक्र में रहकर भी 
टूटी नही है कवि की प्रतिबद्धता

उम्र कुछ बढ़ी जरूर है 
पर हौसला बुलंद है 
बूढ़े बरगद की तरह 

नई कोपलें फूटने लगी है फिर से 
उम्मीदे जगाने के लिए 
उन टूट चुके लोगों में ...
कमजोर पड़ती क्रांति
फिर बुलंद होती है


कवि भूल नही पाता
अपना कर्म
कूद पड़ता है फिर से
संघर्ष  की रणभूमि पर
योध्या बनकर 

तिमिर में भी लड़ता एक दीया 
तूफान को ललकारता 
लहरों से कहता -
आओ छुओ मुझे 
या बहाकर ले जाओ 

हम भी तो देखें 
हिम्मत तुम्हारी ....

Tuesday, March 26, 2013

होली और तुम्हारी याद


वे सारे रंग
जो साँझ के वक्त फैले हुए थे
क्षितिज पर
मैंने भर लिया है उन्हें अपनी आँखों में
तुम्हारे लिए

वर्षों से किताब के बीच में रखी हुई
गुलाब पंखुड़ी को भी निकाल लिया है
तुम्हारे कोमल गालों के गुलाल के लिए


तुम्हारे जाने के बाद से
मैंने किसी रंग को
अंग नही लगाया है
आज भी  मुझ पर चड़ा हुआ है
तुम्हारा ही रंग
चाहो तो देख लो आकर एकबार
दरअसल ये रंग ही
अब मेरी पहचान बन चुकी है

तुम भी  कहो  कुछ
अपने रंग के बारे में ....

Thursday, March 21, 2013

मैं मिला हूँ उस नदी से आज


एक नदी
जो निरंतर बहती है
हम सबके भीतर कहीं
वह नदी जिसने
देखा नही कभी कोई सूखा
वह नही जिसे प्यास नही लगी कभी
मैं मिला हूँ उस नदी से आज
अपने भीतर

यदि आप नही मिले
अपने भीतर बहते उस नदी से
देखा नही यदि उसकी धाराओं को
तब छोड़ दो उसे अकेला
उसकी लहरों के साथ उन्मुक्त
ताकी वह बहती रहे निरंतर
कभी मंद न पड़े लहरें उसकी
किसी हस्तक्षेप से

उसकी धाराओं में जीवन है
छोड़ दो उसे अकेला ,ताकि
हमारा अहंकार उसे सूखा न दें
निगल न लें उसे
ईर्ष्या की बाढ़
ऐसा होने पर
बह जायेगा सब कुछ
उस पानी में सड़ जायेगी इंसानियत
अशुद्ध हो जायेगा नदी का जल ....

Saturday, March 9, 2013

क्षणिकाएँ

1.

शुक्रिया करूँ उनका 

या 

हंसू खुद पर ...

मेरी हर बात को पसंद किया 


मेरे चेहरे की मासूमियत देख कर ..


2.

मज़हब का रंग न चढाओ 
मेरी वतनपरस्ती पर 
खून मेरा भी लाल है तुम्हारी तरह ...

3.

चलो अब तुमसे कोई
 शिकायत नही करूँगा 
तुम क्या हो , कौन हो 
        सोचना अकेले में कभी ......

4.

ऊपर से सूख चुके ज़ख्मों को 

कुरेदने में 


बहुत आनंद आता है उन्हें 

ये सभी सम्वेदनशीलता की चादर ओढ़े रहते हैं 

जब उतर जाती है घाव की ऊपरी परत 

और रिसने लगता है पानी 

ज़ख्म से
वे मुस्कुराते हैं ....


5.

उन्हें गम है 
कि हम दोस्त हैं 


वे चाहते हैं हमें 

लड़ते देखना 

ज़हर की पुड़िया लिए घूमते हैं कुछ लोग 

ये वही है 

जो व्याख्यान देते हैं

मित्रता के पक्ष में


6.

उन्होंने 


खोली बोतल शराब की मेरे लिए 


मैंने सिर्फ पानी मिलाया 

और मैं ही शराबी कहलाया

7.

कविताएँ उनकी भी छपी 
और उनकी भी 


अंतर कविताओं में नही 
तस्वीरों में था ....


बस एक को ही वाहवाही मिली ....

Thursday, March 7, 2013

महिला दिवस की हार्दिक बधाई के साथ


अपने ही मुद्दों से  
जुड़े सवालों पर वे बिखरे -बिखरे से हैं 
जहाँ होना था एकजुट 
वे टूटे हैं 
या तोड़े गये हैं 
कुछ ने तो राजनीति की 
जमकर 
और कुछ ने भटकाया है 
हक की लड़ाई यूँ नही लड़ी जाती
गुटों में बंट कर

हाथ की उँगलियों को जोड़कर
मुट्ठी बनाकर देखिये ,
कितनी मजबूत है

ये जो टीवी पर दिखाकर
कहानी घर -घर की
नारी को नारी से लड़ाने की साज़िस
सोचिये इस प्रश्न को कभी फुर्सत से

हक कोई देता नही किसी को
आसानी से
लड़कर लेना होगा
वजूद का सवाल जो है 


दिया हुआ हक छीन लें कब कोई 
ये भी किसे खबर ...?

Thursday, February 21, 2013

मैं बहुत विचलित हूँ इस शहर में अब ..


आज मैंने फिर देखा है
सड़कों पर इंसानी खून
मांस के चीथड़े
लहूलुहान इंसानियत

भेड़ियों ने दिन दहाड़े किया अपना काम
जिनके कंधों पर था
सुरक्षा का भार
वे सोते रहे गहरी नींद में

चारमीनार पर फिर से
दीखने लगीं हैं दरारे
खामोश है गोलकुंडा
बूढ़े खंडहर के रूप में 
शांतिदूत गौतमबुद्ध की प्रतिमा
हुसैन सागर के बीच
एक दम नि:शब्द

मैं बहुत विचलित हूँ
इस शहर में अब
 .....
21/02/2013 की शाम हैदराबाद में हुए बम विस्फोट के बाद लिखी एक रचना .

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Monday, February 18, 2013

कभी तो हटेंगे ये बादल..




कोशिशें बहुत की 

तुम्हें रोकने की 

नाकाम हुई मेरी कोशिशें

तुम्हें बचकाना लगा 

मेरा प्रयास 

उजाले की आस में 

मैंने खोल दिए झरोखें 

तभी, कुछ बादलों ने ढक लिया सूर्य को 

अब तो मानना पड़ा कि 

खपा है इनदिनों सूरज भी 


चलो अब मैं मानता हूँ हार 

लेकिन अब  मैंने 

द्वार खोल दिया है 

इस उम्मीद में, कि 

कभी तो हटेंगे ये बादल..

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...