Saturday, February 20, 2010

सीखना चाहता हूं

चला जाना चाहता हूं
मैं वहां तक
जहाँ तक नजरें जाती हैं .....
जंहाँ देखता हूं रोज
सूरज को डूबता हुए .

मैं पकड़ना चाहता हूं अपने हाथों में
पश्चिम की आकाश में फैले हुए रंगों को
भर लेना चाहता हूं
उन्हें अपने दामन में.
कुमुदनी पर मचलते तितलियों से सीखना चाहता हूं
आशिक बनना
मैं उनका शागिर्द बनना चाहता  हूं .

नन्हे पौधों से सीखना चाहता  हूं
सर झुकाकर नमन करना , और
सीखना चाहता हूं
मित्रता. किन्तु
मनुष्यों से नहीं
पालतु पशुओं से , किउंकि
वे स्वार्थ के लिए
कभी धोखा नहीं देते .

Friday, February 19, 2010

हाथी  का चित्र


पिछले शनिवार
दो बच्चे आये मेरे कमरे पर
उन्होंने बनाये चित्र
तीन हाथियों का
माँ हाथी और उसके दो बच्चे .
मैंने पूछ लिया
हाथी ही किउन ?
जवाब आया
मेरे बच्चों के लिए
कहा ...
जब मेरे बच्चे होंगे
तब हाथी नहीं होंगे शायद जंगल में
किउंकि जंगल नहीं बचेगा तब
सिर्फ आदमी ही आदमी होंगे
फिर बनाया उन्होंने हरी- हरी घांस
जिस पर हाथी चल रहे थे .
मैंने कहा ....
वाह-रे नन्हे चित्रकार
तुम्हारी सोच को नमन .

भोर की कविता

यह भोर की कविता है
इसे लिखने के लिए
मैं रात भर जगता रहा , या फिर
शायद जागकर दिमाग में
इसे  सजाता रहा
अनुभव  गहरा था
अभिव्यक्ति कठिन
शव्दों में सजाना आसान न था .
नींद ने तो कब से बेवफाई कर ली आँखों से
अब वफ़ा शव्द से मेरा
नौ का आंकड़ा है
या फिर मैं यह कहूँ कि..
वफ़ा शव्द से ही
बेवफाई कर ली मैंने
मैं बेवफा हो गया  हूं .

आज मैं यह जो
 कविता लिख रहा हूं
यह एक लम्बी कहानी है
इसे समझ पाओगे  कि  नहीं
कह नहीं सकता
किउंकि यह भोर कि कविता है ......

Thursday, February 11, 2010

हाँ यह सच है

हाँ यह सच है , कि
मैं आर्य  नहीं हूं , किन्तु ..
यह भी सच है ..
मै भी बना हूं
रक्त और मांस से
जैसे बने हो तुम .

मै शिकार करता हूं
आजीविका के लिए
तुम  करते हो शिकार
मनोरंजन  के लिए
खाता  हूं मैं अध्जला  मांस
क्यों कि
अब न जंगल की लकड़ी है मेरे पास
और न ही  केरोसिन  के दाम

पहनता हूं छिन्न वस्त्र
और तुम वस्त्र में भी रहते  हो नग्न
बस यही अंतर है
मेरे तुम्हारे बीच .

दिवानिशि मै करता हूं श्रम
मत भूलो यह
मैंने ही गड़ा था
सर्वप्रथम अपने करो से
उस देवी की  प्रतिमा को
जिसे तुम पूजते हो पुष्पमाला पहनाकर ......
तुम्हारे मंदिर , मस्जिद  और गिरजे की दीवारें
मेरे श्रम का परिणाम है

मैंने ही सीखाया तुम्हारे पूर्वजों को
खेतों में हल  चलाना .....
फिर सीखाया मैंने उन्हें धातु  का व्यवहार
उगाया धान , अन्न  मैंने सबसे पहले
फिर भी मै आर्य नहीं
तुम्हारी नज़रों  में
धूप का चश्मा जो चड़ा है आँखों पर

मै मान चूका हूं , कि
मै आर्य नहीं हूं
तुम्हारी चमचमाती  गाड़ी और पैरों की बूट
अब भी मै ही चमकाता हूं
बनाया था मैंने उस स्कूल की दीवारों को
जहाँ से पढकर तुम्हारे  बच्चे
देते हैं  मुझे अंग्रेजी  में गालियां
मै आर्य नहीं , किन्तु
न मै और न ही मेरे जैसे
देते हैं गालियां मनोरंजन के लिए ......





Thursday, February 4, 2010

चाँद वाली नानी भी प्रभावित है

कलतक चाँद पर
जो नानी दिखती थी
अब वह ..
और बूदी हो गयी है
नानी नहीं अब वह
परनानी  हो गयी है
अब वह  गरीब हो गयी है
इसीलिए ..
धरतीवालों को अपनी ज़मीन बेचने लगी है
पृथ्वी की आर्थिक मंदी से
चाँद वाली नानी भी प्रभावित  है
किउन न हो
दोनों का रिश्ता  जो है
आज नानी ज़मीन बेच रही है
कंही कल वह खुद को न बेच दे .
धरतीवालों का क्या भरोसा
कुछ भी खरीद बेच सकते हैं .

चाँद देखने की आस में

उनके सपने में अब
मै नहीं आता , और
मेरे सपनो में  अब  वे नहीं आते
वे सपना नहीं देखते
और मुझे
नींद नहीं आती  आजकल........

जगता रहता हूं रात भर
चाँद देखने की आस में
किन्तु ...
चाँद  सच में आजकल
ईद का चाँद हो गया है
या फिर  शायद....
वह भी खोज रहा है नौकरी
किसी अमेरिकी  कम्पनी में
रोजी-रोटी  का सवाल है ....
अब लोग पहुँच रहे हैं  चाँद पर
चाँद की खोज में
उन्हें चाँद पर चाँद नहीं
पानी मिला है ....
वैज्ञानिक  पहुँच  गए
जानने के लिए पानी के स्रोत
 पर किसे पता वो पानी
चाँद के आंसू  है
और वैज्ञानिक
आंसू की भाषा नहीं समझते .

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...