Thursday, February 21, 2013

मैं बहुत विचलित हूँ इस शहर में अब ..


आज मैंने फिर देखा है
सड़कों पर इंसानी खून
मांस के चीथड़े
लहूलुहान इंसानियत

भेड़ियों ने दिन दहाड़े किया अपना काम
जिनके कंधों पर था
सुरक्षा का भार
वे सोते रहे गहरी नींद में

चारमीनार पर फिर से
दीखने लगीं हैं दरारे
खामोश है गोलकुंडा
बूढ़े खंडहर के रूप में 
शांतिदूत गौतमबुद्ध की प्रतिमा
हुसैन सागर के बीच
एक दम नि:शब्द

मैं बहुत विचलित हूँ
इस शहर में अब
 .....
21/02/2013 की शाम हैदराबाद में हुए बम विस्फोट के बाद लिखी एक रचना .

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Monday, February 18, 2013

कभी तो हटेंगे ये बादल..




कोशिशें बहुत की 

तुम्हें रोकने की 

नाकाम हुई मेरी कोशिशें

तुम्हें बचकाना लगा 

मेरा प्रयास 

उजाले की आस में 

मैंने खोल दिए झरोखें 

तभी, कुछ बादलों ने ढक लिया सूर्य को 

अब तो मानना पड़ा कि 

खपा है इनदिनों सूरज भी 


चलो अब मैं मानता हूँ हार 

लेकिन अब  मैंने 

द्वार खोल दिया है 

इस उम्मीद में, कि 

कभी तो हटेंगे ये बादल..

Thursday, February 14, 2013

वसंत ने कहा –करो मेरा विस्तार ....


आम के पेड़ पर
जब आकर बैठी गोरैया
मोर ने पंख फैलाये 


और कोयल ने सुनाया गीत मधुर 
मचल उठा वसंत अंग –अंग में 
भर गये जीवन में कई रंग
सरसों के खेतों ने लहरा कर गाया
स्वागत गीत ..
वाणी की वीणा ने छेड़ा नया राग
हवा ने नृत्य किया मचल –मचल कर
मुस्कुराया सूर्य
रात की रानी ने महका दिया रात ..


वसंत ने कहा –
मुझे बैठा लो तुम सब मुझे
अपने दिलों में
और करो मेरा विस्तार ....

Tuesday, February 12, 2013

तुम्हारा कुछ क़र्ज़ बाकी है मुझ पर ...


गलती करने के बाद ही अहसास होता है
अपनी गलती का हमें,
मुझे भी हुआ
एक बार नही , कई बार
पहली बार तब
जब मैंने स्वीकार किया तुम्हारा निमंत्रण
और चला आया था,  साथ -साथ तुम्हारे

यह अहसास तब हुआ
जब तुमने बीच राह में ही छोड़ दिया
मेरे प्रेम और विश्वास का दामन
मजाक बनाया मेरे स्छ्न्द व्यवहार का
और तुम्हें आने लगी साजिशों की बू मेरी हर बात पर
मेरी हर साँस से

उन सभी लोगों ने
जिन्होंने देखा मुझे ,
नासमझ कहा
और तुमने कहा
मुझे शातिर ..लम्पट

अब हर पल होता है यह अफ़सोस
कि दिन-ब -दिन  रिक्त हो रहा है
मेरे विश्वास  का कोश
और उधर फ़िदा हो रहा है जमाना
तुम्हारी मुस्कान के आगे

यकीं किस पर किया जाये आज
खुद के सिवा
और इस पर भी तुम बताते हो जमाने को
कि मैं खुदगर्ज हो गया हूँ

तुम्हारा  कुछ क़र्ज़ बाकी है मुझ पर
चुकाना तो पड़ेगा
ताकि सुकून मिले मेरी रूह को
जहाँ से रुकसत के बाद
वर्ना भटकना पड़ेगा मुझे
मौत के बाद

तुम्हें मालूम है न
मित्रता के कर्ज से मुक्त न हो सका था मृत्युंजय
और मारा गया निहथ्या...?

(स्केच- गूगल स्केच साईट से .साभार )

Monday, February 11, 2013

उन्होंने कहा - देशद्रोही मुझे

मैंने पढ़ी थी 
सिर्फ एक कविता 'विद्रोही ' कवि की 
'बलो वीर '

उन्होंने कहा -
देशद्रोही मुझे 

मुझे आई हंसी 
और उन्हें क्रोध ....

Tuesday, February 5, 2013

ताकि बहारें बनी रहे इन फिज़ाओं में

सुनो बच्चियों 
तुमने क्या गाया काश्मीर की वादियों में 
कि मलाल के बाद 
अब तुम हो निशाने पर 

लेकिन सुनो 
इन्हें खूब शौक है 
कब्बाली का .. 

पर तुम तो 
अपना ही गीत गाना 
उन्मुक्त स्वर में 
ताकि बहारें बनी रहे 
इन फिज़ाओं में ,और 
महकते रहे गुलशन 

देखा है न 
पहाड़ों को 
किस तरह खड़े हैं अडिग ...? 

(काश्मीर की उन बच्चियों के हक़ में ..जिन्हें रोका जा रहा है गाने से ) 

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...