Wednesday, July 19, 2017

मेरा देश रोना चाहता है बहुत जोर से चीख़ कर

मान लीजिये कि कभी आप
चीख़ कर रोना चाहते हैं
किन्तु रो नहीं सकते !
कैसा लगता है तब ?
तकलीफ़ होती है न ?
मेरा देश रोना चाहता है बहुत जोर से चीख़ कर
जैसा कि मैं चाहता हूँ
किन्तु रो नहीं पाता हूँ
बहुत घुटता रहता हूँ
जैसे किसी तानाशाही ताकत ने
कैद कर दिया मुझे
किसी कैद खाने में
जहाँ से मेरी आवाज़ किसी को सुनाई नहीं देती
मैं करना चाहता हूँ
दर्द और प्रेम का इज़हार एक साथ
पर मेरी आवाज़ और तुम्हारे बीच
बहुत मजबूत एक दीवार है
मेरी आवाज़ भेद नहीं पाती उसे
आओ हम मिलकर
चीखें दीवार की दोनों ओर .....

Sunday, July 2, 2017

बरसात में नदी

बरसात में कभी देखिये
नदी को नहाते हुए
उसकी ख़ुशी और उमंग को
महसूस कीजिये कभी
विस्तार लेती नदी 
जब गाती है
सागर से मिलन का गीत
दोनों पाटों को बात करते सुनिए
कि हर नदी की किस्मत में
मिलन नहीं है
फिर भी बारिश में नहाती कोई नदी
जब खुश होती है
पहाड़ खोल देता है अपनी बाहें
झूमता है जंगल
खेत खोल देता द्वार
और कहता -
ओ , नदी थोड़ा संभल कर
मुझे सर्दी लग जाएगी !
खेत, अपने उदास किसान का
चेहरा सोच कर बुबुदाता है |
कहीं दूर उस नदी किनारे पर बसा गाँव से निकल कर
कुछ बच्चों ने कागज की कश्ती बनाई है
वे उसे नदी में बहा देना चाहते हैं
उस कश्ती में बच्चों ने
अपनी ख़ुशी भर दी है
और बताया है
कि, पिछले साल उनके गाँव के किसान, चिंटू के पापा ने
सूखे के कारण अपनी जान दे दी थी
पानी के आभाव में मरी थी कई बकरियां
बच्चों ने कश्ती में सूखे की पीड़ा लिखी है |
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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...