Wednesday, November 20, 2013

फैक्ट्रियां

जरूरतों की आपूर्ति के लिए 
बनाई गई फैक्ट्रियां,
ये फैक्ट्रियां अब 
बना रही हैं 
बढ़ा रही हैं रोज 
हमारी जरूरतें 

आदमी पहले भी 
बिकता था 
आज भी बिकता है

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...