Tuesday, October 21, 2014

आओ पहाड़ों पर चलें

आओ पहाड़ों पर चलें
जहाँ बचे हुए हैं कुछ वृक्ष आज भी अपने दम पर
झरनों ने अभी दम नही तोड़ा
जीवन बाकी है अभी।
क्या पता मिल जाये कोई वन्य प्राणी टहलते हुए
जिन्हें हम जानवर कहते हैं अक्सर
और वे समझते हैं हमें इंसान
आओ , उन्हें बता दें हम अपने बारे में।

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...